Monday, November 19, 2007

सफर

पल पल ने पिरोये थे सपनो के मोती,
एक झटके में वह हार टूट गया,
और सारे मोती बिखर गए,
इधर उधर, उधर इधर.

अश्रुओं कि धार बह निकली,
लगा कि ज़िंदगी मुड़ कर पहुंच गयी,
उसी जगह पर जहाँ से सफर शुरू किया.

पर फिर सफर तो चलता रहता है,
पल पल करके ज़िंदगी आगे बढ़ती रहती है,
पड़ाव आते रहते है.

फरक बस इतना है कि,
कुछ पड़ाव जल्दी आते है,
और कुछ देर मैं,
पर आते तभी है,
जब उचित दूरी तै कर ली गयी हो.

शायद अभी अगले पड़ाव के लिए कुछ दूरी बाक़ी है,
पर एक विश्वास जरूर है कि सफर का अगला पड़ाव जरूर आयेगा
हार के बाद हार के बाद हार के बाद हार के बाद जीत जरूर आयेगी.

इधर उधर बिखरे मोती,
फिर से जुड़कर एक हार बन गए,
सफर जारी है, सफर जारी रहेगा,
पड़ाव आते रहे है, पड़ाव आते रहेंगे,
अगला पड़ाव भी जल्दी ही आएगा
जल्दी ही आएगा

आमीन