Monday, October 29, 2007

निश्चय

आज बहुत मैं थक गया हूँ,
शरीर भी पीडा दे रहा है,
क्यों न रूक कर अज रात सो लूं.

पर कल क्या देर हो जायेगी,
क्या फिर से कोशिश बेकार जायेगी,
वैसे भी मेरा पहले वहाँ पहुँचना शायद संभव नही,
मुझे तेज़ चलने वाले बहुत है इस दौड़ मैं.

जब सब साथ चले थे,
सोचा था कि इस बार मैं सबसे तेज़ भागूँगा,
पर मैं इस बार भी इतना धीमे क्यों भागा,

मन मैं निश्चय किया था,
कि ये अख्रिरी कोशिश होगी,
क्योंकि ये कोशिश और सबकी कोशिश से,
थोरी सी ज्यादा प्रबल होगी,

हाँ ये तो सही है कि ये कोशिश,
पिछली कोशिशों से प्रबल है ,
अभी मैं काफी लोगों से आगे हूँ,
कुछ ही है जो मुझसे आगे दौड़ रहे हैं,

नही मैं अज नही सोओंगा,
जो निश्चय किया था,
उसे पूरा करना है,
अपने आपसे किए वादे को,
इस बार निभाना ही है..

यदि मैं अपने अर्तर्मन से,
किए हुए वादे को निभा पाया,
मैं संतुष्ट हो जाऊँगा,
अन्दर से भी और बाहर से भी,

अब मुझे पीडा का एहसास नही,
चेहरे पे कोई शिकन नही,
क्योंकि निश्चय किया है मैंने,
एक भार्प्पूर कोश्सिः का..
शायद सबसे पहले न पहुंच पों,
पर निश्चय ही पहले पहुँचने वालों मैं मैं भी होऊंगा.

4 comments:

Shailendra Gupta said...

Good one bhiya !!
A good thought just put some prose in to it and it will be damn good I guess.

Well again a good shot !!

Anonymous said...

lagta hai time nahin diya gaya hai iss par

chacha said...

bit disappointed this time around

Unknown said...

feels like penning down thought process in raw form, as they came to mind....nice n natural....