फिर मिलेंगे
मुस्कराहट,
जिसे में देखता रह गया,
मैं अपनी उलझने भूल गया,
एक टक उसे देखता रह गया,
सड़क के बीच में रुक गया,
खुद को भी भूल गया...
ऑंखें,
जिनमे मैं डूब गया,
गहरी गहरी सांसें भरने लगा,
मिर्जा ग़ालिब के शेर पढ़ने लगा,
खुद को उनमे ढूढने लगा,
इन्द्रधनुष उनमे मुझे दिखने लगा,
अपनी दुनिया उनमे ढूढने लगा,
जुल्फें,
हवाएँ जिनसे अट्खेलियन कर रही थी,
उनके लाल सुर्ख लाल गालों पे आ पड़ी थी,
हम दूर खडे हुए गुजारिश कर राहे थे,
की ऐ हवा जरा धीरे चल,
कहीं घटाएँ इस कदर ना छा जाएं,
की हम यहीं मदहोश हो जाएं..
वह शाम तो गुजर गयी,
आलम अब ये हो गया है,
की अकेले में हँसता हूँ,
याद उसी को करता हूँ,
बादलों में उनकी तस्वीरों को ढूद्ता हूँ,
उससे मिलने की फरियाद करता हों,
उसकी मुस्कराते हुए एक बार फिर देखने की हसरत रखता हूँ,
उस खुदा की खुदाई में भरोसा रखता हूँ,
दिल में बार एक ही ख्याल रखता हूँ,
की कहीं किसी मोड़ पे,
हम फिर मिलेंगे..
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3 comments:
aati uttam, naya prayog hai kavita ke liye. sahi hai.
jab unki julfon ke saaye mein jaa baithe to huaa ye yakeen
ke ek saaya ab hai mera taafalak taa zamee
aankho mein doobne utre to jaana humne
ke gahraayi dil ki hai jheel ya kisi samandar ki naheen
Dheeraj: waah waah..fod daala
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