सफर
पल पल ने पिरोये थे सपनो के मोती,
एक झटके में वह हार टूट गया,
और सारे मोती बिखर गए,
इधर उधर, उधर इधर.
अश्रुओं कि धार बह निकली,
लगा कि ज़िंदगी मुड़ कर पहुंच गयी,
उसी जगह पर जहाँ से सफर शुरू किया.
पर फिर सफर तो चलता रहता है,
पल पल करके ज़िंदगी आगे बढ़ती रहती है,
पड़ाव आते रहते है.
फरक बस इतना है कि,
कुछ पड़ाव जल्दी आते है,
और कुछ देर मैं,
पर आते तभी है,
जब उचित दूरी तै कर ली गयी हो.
शायद अभी अगले पड़ाव के लिए कुछ दूरी बाक़ी है,
पर एक विश्वास जरूर है कि सफर का अगला पड़ाव जरूर आयेगा
हार के बाद हार के बाद हार के बाद हार के बाद जीत जरूर आयेगी.
इधर उधर बिखरे मोती,
फिर से जुड़कर एक हार बन गए,
सफर जारी है, सफर जारी रहेगा,
पड़ाव आते रहे है, पड़ाव आते रहेंगे,
अगला पड़ाव भी जल्दी ही आएगा।
जल्दी ही आएगा।
आमीन
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7 comments:
Dude !! Nice thoughts !! Looks like real life given a textual shape !!
Mian MASTRAM .... itni udaas kavita...
tumse aisi ummeed nahi thi...
anyway .. jo bhi hai bahut hi sahi
This is better than i read earliar. Nice one.
Amen !!
mast hai bhai ... amen ...
Dude!! good thoughts conveyed with simple words... even I am able to understand that inspite of my poor hindi... just keep them coming....
था तुम्हें मैंने रुलाया!
हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!
था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
स्नेह का वह कण तरल था,
मधु न था, न सुधा-गरल था,
एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
बूँद कल की आज सागर,
सोचता हूँ बैठ तट पर -
क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
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