Friday, January 4, 2008

मोती
रास्ता ढूढ़ रही थी,
हवाएँ उनकी जुल्फों में,
जुल्फें भी मचल रही थी,
कभी आँखों पर,
कभी चेहरे पर,

वो झरोखे पे खडे थे,
न जाने किस सोच मी इस कदर डूबे थे,
होश नही था की पलकें भी नही झपकीं,
होश नही था की मुस्करा राहे थे वो,
मौसम भी धीरे धीरे बदलने लगा,
हवाएँ भी अब तेज़ हो गयी थी,
हलकी फुलकी चीजें अब उड़ने लगी थी,
मिटटी का एक कान उनकी आँखों में जा गिरा,
ओर पलकें झुक गयी,
एक टुकडा आंसू का,
गिर पड़ा आँखों से टूट कर,
उन्होने रोका उसे अपनी हथेली पर,
ओर बन कर लिया अपनी मुट्ठी मी,
ओर जब मुट्ठी खोली,
तो आंसू मिला नही,
पर एक सफ़ेद मोती नज़र आया,
शायद इसी के इन्तेज़ार में,
वह झरोखे पे खडे थे

मौसम बदलता है,
मुश्किलें आती है,
पर वह देके जाती है,
हर बार एक नया मोती,
एक अनमोल मोती.....

4 comments:

Unknown said...

good thinking!!!

Dheeraj said...

naye saal ka pahla moti anmol hai ... sambhaal ke rakhna :-)

Ships said...

Nice!

Ravish said...

@Ajit: Lagta hai is baar apke vicharon se mere viacharon ki string match kar gayi hai..

Dheeraj: Ekdum dil ke paas rakha hai..sabse keemti chijen mai wohin rakhta hoon...


Ships: Shukria

Cheers!!